VARANASI ZONE BUREAU: ज्ञानवापी मामले में आज हिंदू पक्ष के हक में एक और बड़ा फैसला आया है। वाराणसी जिला कोर्ट ने ज्ञानवापी में मौजूद व्यास जी के तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा करने की अनुमति दे दी है। व्यास जी के तहखाने में पूजा किए संबंधी आवेदन पर जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट में दोनों पक्ष की तरफ से मंगलवार को बहस पूरी कर ली गई थी, जिसके बाद ये फैसला सुनाया गया।
व्यास जी के तहखाने में 7 दिन में पूजा के लिए व्यवस्था बहाल का आदेश दिया गया है। जिला अदालत के आदेश पर अमल करने के लिए प्रशासन से कहा गया है। इस फैसले के बाद 30 साल बाद ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में पूजा हो सकेगी। यहां काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड की ओर से पूजा करवाई जाएगी। कोर्ट के फैसले के बाद हिंदू पक्ष ने इसे बड़ी जीते बताते हुए जश्न मनाया।
बताया जा रहा है कि व्यासजी के तहखाने को DM की सुपुर्दगी में दिया गया है। साथ ही कोर्ट ने नंदी के सामने की बैरिकेडिंग खोलने की अनुमति दी है। ऐसे में अब व्यास जी के तहखाने में साल 1993 के पहले जैसी पूजा के लिए आने- जाने दिया जाएगा। बता दें कि ज्ञानवापी स्थित नंदी के मुख के सामने दक्षिणी दीवार के पास मौजूद व्यास जी के तहखाने में नवंबर 1993 तक पूजा की जाती थी, लेकिन इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पूजा ने रुकवा दी गई थी।
साल 1993 से बंद हुई थी व्यास जी के तहखाने में पूजा
ज्ञानवापी परिसर में दक्षिणी दीवार के पास मौजूद तहखाने में साल 1551 से व्यास पीठ स्थापित रहा। इसी व्यास पीठ से मां शृंगार गौरी की पूजा, भोग और आरती की जाती रही। साल 1993 में राज्य सरकार और जिला प्रशासन के मौखिक आदेश के जरिए पूजा-पाठ और अन्य परंपराओं को बंद करा दिया था। ज्ञानवापी परिसर के चारों ओर लोहे की बैरिकेडिंग भी करा दी गई थी। दिसंबर 1993 में ही तत्कालीन जिलाधिकारी ने व्यास पीठ के तत्कालीन पुजारी पंडित सोमनाथ व्यास के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही तहखाने में ताला भी लगा दिया था। इसके बाद साल 1996 में दायर आदिविश्वेश्वर बनाम राज्य सरकार के वाद में नियुक्त अधिवक्ता आयुक्त ने अपनी रिपोर्ट में तहखाने के 1 ताले की 2 चाबी का जिक्र किया था। तत्कालीन जिलाधिकारी के ताला खोलने से मना करने के बाद व्यास पीठ के पंडित सोमनाथ व्यास ने 1 चाबी से ताला खोल दिया था। ऐसे में ज्ञानवापी परिसर में ASI सर्वे के दौरान नंदी जी के सामने स्थित इस तहखाने का दरवाजा खुला हुआ था।
1991 में दाखिल हुआ था ज्ञानवापी मामले में पहला मुकदमा
काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस में 1991 में वाराणसी कोर्ट में पहला मुकदमा दाखिल हुआ था। याचिका में ज्ञानवापी परिसर में पूजा की अनुमति मांगी गई। इसमें प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी शामिल थे। मुकदमा दाखिल होने के कुछ महीने बाद सितंबर 1991 में केंद्र सरकार ने पूजास्थल कानून बना दिया। इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजास्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजास्थल में नहीं बदला जा सकता था। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे 1-3 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था ,इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था, लेकिन ज्ञानवापी मामले में इसी कानून का हवाला देकर मस्जिद कमेटी ने याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद साल 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी भी मामले में स्टे ऑर्डर की वैधता केवल 6 महीने के लिए ही होगी। उसके बाद ऑर्डर प्रभावी नहीं रहेगा। इसी आदेश के बाद 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई।
साल 2021 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने पुरातात्विक सर्वेक्षण की दी मंजूरी
साल 2021 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दे दी। आदेश में एक कमीशन नियुक्त किया गया और इस कमीशन को 6 और 7 मई को दोनों पक्षों की मौजूदगी में श्रृंगार गौरी की वीडियोग्राफी के आदेश दिए गए। 10 मई तक कोर्ट ने इसे लेकर पूरी जानकारी मांगी थी। 6 मई को पहले दिन का ही सर्वे हो पाया था, लेकिन 7 मई को मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध शुरू किया और मामला कोर्ट पहुंचा। 12 मई को मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने कमिश्नर को बदलने की मांग खारिज कर दी और 17 मई तक सर्वे का काम पूरा करवाकर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि जहां ताले लगे हैं, वहां ताला तुड़वा दीजिए। अगर कोई बाधा उत्पन्न करने की कोशिश करता है तो उसपर कानूनी कार्रवाई करिए, लेकिन सर्वे का काम हर हालत में पूरा होना चाहिए। 14 मई को सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर तुरंत सुनवाई से इंकार कर दिया। याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे पर रोक लगाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने से इंकार करते हुए कहा कि हम बिना कागजात देखे आदेश जारी नहीं कर सकते हैं। मामले की सुनवाई 17 मई को करने को कहा। 14 मई से ही ज्ञानवापी के सर्वे का काम दोबारा शुरू हुआ। सभी बंद कमरों से लेकर कुएं तक की जांच हुई। इस पूरे प्रक्रिया की वीडियो और फोटोग्राफी भी हुई। 16 मई को सर्वे का काम पूरा हुआ। इस दौरान हिंदू पक्ष ने दावा किया कि कुएं से बाबा मिल गए हैं। इसके अलावा हिंदू स्थल होने के कई साक्ष्य मिले। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने कहा कि सर्वे के दौरान कुछ नहीं मिला। इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने पूजा स्थल कानून 1991 का हवाला देते हुए हिंदू पक्ष की याचिका खारिज करने की मांग की। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जल्द से जल्द सुनवाई का आदेश दिया। 12 सितंबर को कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी और कहा कि इस मामले में सुनवाई जारी रहेगी। 12 सितंबर को ही इस मामले से जुड़ी पांच याचिकाओं को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इनमें से 3 पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
24 जनवरी 2024 को वादी पक्ष को सर्वें रिपोर्ट देने का हुआ था आदेश
24 जनवरी 2024 को वाराणसी जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने अहम फैसला सुनाया। इसके तहत उन्होंने वादी पक्ष को सर्वें रिपोर्ट दिए जाने का आदेश दिया। 25 जनवरी 2024 को रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई। रिपोर्ट के मुताबिक ज्ञानवापी में मंदिर का स्ट्रक्चर मिला है। इसके बाद अब 31 जनवरी 2024 को वाराणसी जिला अदालत ने हिंदू पक्ष को व्यास तहखाने में पूजा करने की इजाजत भी दे दी।
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