AYODHYA ZONE BUREAU: चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन आज जहां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धि दात्री की पूरे विधानविधान से पूजा की जा रही है, वहीं रामनवमी का त्योहार भी पूरे उत्साह के मनाया जा रहा है। अयोध्या के रामजन्‍मभूमि मंदिर में रामलला के राघव स्वरूप की प्राण प्रतिष्‍ठा के बाद पहली बार भव्‍य श्रीराम जन्‍मोत्‍सव आयोजित किया गया है। यहां पूरे विधिविधान से पूजन के बाद रामलला का सूर्याभिषेक किया गया।

सूर्याभिषेक से पहले रामलला को दिव्य स्नान कराया गया है। रामलला को पंचामृत स्नान के बाद इत्र लेपन किया गया। रामलला के प्रतीकात्मक जन्म के बाद दोपहर करीब 12 बजे रामलला के ललाट पर 4 मिनट तक सूर्य तिलक नजर आया। सूर्य तिलक करीब 75 मिलीमीटर का रहा। इस तरह रामनवमी के दिन राम मंदिर में भव्य और दिव्य नजारा दिखाई दिया। इसको लेकर भक्त बेहद उत्साहित नजर आए। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार रामनवमी के दिन यानी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मर्यादा-पुरूषोत्तम भगवान राम का जन्म हुआ था।

बता दें कि रामलला के सूर्याभिषेक लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट और वैज्ञानिकों की टीम पिछले कुछ दिनों से खास तैयारी कर रही थी। वहीं, अयोध्या के राम मंदिर में रामनवमी के दिन हो रहे विशेष आयोजन में शामिल होने के लिए देश भर से लाखों लोग पहुंचे हुए हैं। अयोध्या में राम भक्तों का तांता लगा हुआ है और हर्षोल्लास का माहौल है।

सनातन धर्म में बेहद शुभ माना जाता है सूर्याभिषेक 
सूर्य की पहली किरण से मंदिर का अभिषेक होना बहुत शुभ माना जाता है । सनातन धर्म में सूर्य को ऊर्जा का स्रोत और ग्रहों का राजा माना जाता है। बताया जाता है कि भगवान राम सूर्यवंशी थे और उनके कुल देवता सूर्य हैं। विशेष दिनों में सूर्य की पूजा दोपहर के वक्त ही होती है, क्योंकि तब सूर्यदेव अपने पूर्ण प्रभाव में होते हैं। साथ ही मान्यता है कि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को दोपहर 12 बजे श्रीराम का जन्म हुआ था। उस वक्त भी सूर्य अपने पूरे प्रभाव में थे।

प्रकाश के पेरीस्‍कोप के सिद्धांत के जरिए सूर्याभिषेक

वैज्ञानिकों की टीम ने सूर्याभिषेक के लिए पिछले दिनों खास तैयारी की थी। इसके लिए पूरा सिस्‍टम प्रकाश के पेरीस्‍कोप के सिद्धांत पर तैयार किया गया। ऑप्टोमैकेनिकल सिस्टम से सूर्य की किरणें भगवान राम के राघव स्वरूप के ललाट पर डाला गया। लेंस और दर्पण से टकराकर किरणें भगवान के मस्तक तक पहुंचाई गई। इसके लिए राम मंदिर के भूतल पर दो दर्पण और एक लेंस लगाया गया। सूर्य की रोशनी दूसरे तल पर लगे तीन लेंस और दो दर्पणों से होते हुए भूतल पर लगाए गए आखिरी दर्पण पर पड़ी। इससे परावर्तित होने वाली किरणों से मस्तक पर तिलक बना।

समझिए सूर्याभिषेक के लिए तैयार किया गया तकनीकी सिस्‍टम

जहां मंदिर के शिखर का निर्माण होना है, वहां से सूर्य की किरणों को एक दर्पण पर डालकर ऐसे कोण पर सेट किया गया, जिससे किरणें परावर्तित होकर मिश्र धातु की बनी पाइप में सीधी प्रवेश करें। इसमें शिखर के तल पर बने पाइप के पहले मोड़ पर 45 डिग्री के कोण पर एक दर्पण लगाया गया, जिससे किरणों को 90 डिग्री के कोण पर परावर्तित कर नीचे की ओर सीधी लाइन में परावर्तित किया जा सके। इसके बाद किरणें ग्राउंड फ्लोर में बने पाइप के मोड़ पर पहुंची। यहां 45 डिग्री के कोण पर एक और दर्पण लगाया गया, जिससे ऊपर से आने वाली किरणों को 90 डिग्री के कोण पर परावर्तित कर पाइप की बाहरी मुख से बाहर भेज दिया। यहां से निकली किरणें प्रभु रामलला के ललाट पर सीधी पहुंची। पाइप के पहले मोड़ और दूसरे मोड़ के बीच भी तीन लेंस लगाए गए। इस लेंस ने सूर्य की किरणों को 75 मिलीमीटर के क्षेत्र में केंद्रित कर राम लला के कपाट पर फोकस कर दिया।

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By Sandeep Kumar Srivastava

Mr. Sandeep Kumar Srivastava is a media professional and educator. He has more than 15 years of journalistic experience. He was attached with the newsroom of many reputed media houses in BHARAT. He worked as a News Anchor, News Producer and Correspondent. He is very well known for his news and program presentation skills in Television and Digital Media. He is Founder and Editor-In-Chief of UTTAR PRADESH HIGHLIGHTS. E-Mail: tvjournalistsandeepsrivastav@gmail.com

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