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LUCKNOW ZONE BUREAU: उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से करोड़ों की आस्था जुड़ी है। हिंदू धर्म में इस स्थान और मंदिर की काफी मान्यता है. लेकिन एक और मंदिर भी ऐसा है, जहां उज्जैन के महाकाल मंदिर की तर्ज पर अलसुबह भस्म आरती होती है। ये मंदिर उत्तर प्रदेश में पीलीभीत जिले के बीसलपुर कस्बे में स्थित है।

यहां के प्राचीन और प्रसिद्ध बाबा गुलेश्वर नाथ शिव मंदिर में हर महीने के पहले सोमवार को होने वाली भस्म आरती को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां की भस्म आरती श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है.। शृंगार के तौर पर होने वाली इस आरती का काफी महत्व है।

यहां सुबह 3 बजे ही श्रद्धालु पहुंचना शुरू हो जाते हैं। श्रद्धाल यहां सबसे पहले पूरे शिवालय को पानी से धोते है। भस्म आरती से पहले शिवलिंग का फूलों से श्रृंगार कर दूध, दही, शहद और पंचामित्र से अभिषेक किया जाता है।जिसके बाद 4 बजे से 6 बजे तक करीब 2 घंटे तक भस्म आरती होती है। भस्म आरती होने के बाद श्रद्धालु भस्म को माथे पर तिलक की तरह लगाते हैं। आरती के बाद शिवलिंग का फूलों और वस्त्रों से श्रंगार किया जाता है। भस्म आरती के दौरान पूरा शिवालय हर हर महाकाल के जयकारों से गूंज उठता है। लोगों की आस्था है कि भस्म आरती में आने वाले व्यक्ति के कष्ट दूर हो जाते हैं।

ऐसे हुई थी इस मंदिर में भस्म आरती की शुरुआत

अब आप सोच रहे होंगे कि मंदिर में आखिर भस्म आरती की शुरुआत कैसे हुई। चलिए यह भी हम आपको बताते हैं। बीसलपुर के रहने बाले महंत धर्मेंद्र पुरी उज्जैन महाकाल के मंदिर में दर्शन के लिए गए थे। इस दौरान उन्होंने महाकाल की भस्म आरती देखी, जिसके बाद उनके मन में विचार आया कि बीसलपुर गुलेश्वर नाथ शिवालय पर भस्म आरती की शुरूआत की जाए। उन्होंने अन्य श्रद्धालुओं के सामने ये बात रखी और भस्म आरती सेवा परिवार नाम से एक संगठन बनाया, जिसके बाद भस्म आरती की शुरुआत हुई।

महाभारत काल का है ये मंदिर, पांडवाें ने स्थापित किया था शिवलिंग

इस मंदिर का इतिहास जानकर आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे। इस शिव मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा बताया जाता है। मान्यता है यहां सैकड़ों साल पहले घना जंगल हुआ करता था। दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। द्वापर युग में महाभारत युद्ध से पहले इसी स्थान पर पांडवों ने कई दिनों तक प्रवास किया था। महाशिवरात्रि के दिन उन्होंने मिट्टी का शिवलिंग बना कर जलाभिषेक किया और इसके बाद पांचो पांडव यहां से चले गए. लेकिन शिवलिंग यही रह गई। इसके बाद यहां मंदिर की स्थापना कर दी गई। तब से स्थानीय लोग इसे पूजने लगे। समय के साथ लोगों के मन में इस मंदिर के प्रति आस्था गहराती गई। अब नवविवाहित जोड़े भी शादी के बाद सबसे पहले इस मंदिर में जाकर दर्शन करते हैं।

By Rithik Dwivedi 'Lucky'

Mr. Rithik Dwivedi 'Lucky' is a Television and Digital Journalist at Pilibhit District of Uttar Pradesh. He worked with many reputed media houses. Presently he is attached with the Lucknow Zone Bureau of UTTAR PRADESH HIGHLIGHTS. His position is Freelance Resident Editor at Pilibhit District. E-Mail: rithik.dwivedi@outlook.com.

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