PRAYAGRAJ ZONE BUREAU: प्रयागराज के सिविल लाइंस स्थित हिंदुस्तान एकेडमी में गुरुवार को खोआ मेले का समापन हुआ। चार दिन चले खोआ मेले का आयोजन नाबार्ड और ई पहल की ओर से किया गया। इस मेले में 10 स्वयं सहायता समूहों और 5 कृषक उत्पादक संगठनों ने स्टॉल लगाया। इस दौरान करीब दस लाख रुपये के खोआ और अन्य खाद्य पदार्थों की बिक्री हुई, जो कि पिछले साल से दो लाख रुपये ज्यादा रही। पिछले साल करीब आठ लाख रुपये के खोआ और अन्य खाद्य पदार्थों की बिक्री हुई थी।

गौरतलब है कि पिछले 12 साल से होली से ठीक पहले खोआ मेले का आयोजन किया जाता है। नाबार्ड की ओर से इस मेले की आयोजन के लिए आर्थिक मदद भी जाती है। वहीं, एनजीओ ई पहल के सभी पदाधिकारी मेले के दौरान सभी व्यवस्थाओं के संचालन में मदद करते हैं। इस मेले के जरिए स्वयं सहायता समूहों और कृषक उत्पादक संगठनों को अपने उत्पादों की बिक्री के लिए अच्छा प्लेटफॉर्म मिल जाता है। इस बार मऊआइमा से आठ, सोरांव से एक और जसरा से एक स्वयं सहायता समूह ने स्टॉल लगाया।
बारां स्थित जलोदरी महिला एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी से जुड़े पंचराज शुक्ला ने बताया कि उन्होंने मेले में करीब अड़तीस हजार रुपये के सामानों की बिक्री की है, जिससे करीब पांच हजार रुपये से ज्यादा का लाभ हुआ। वहीं, सोरांव स्थित आदर्श आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी सुशीला देवी ने बताया कि निजी वजहों से मेले के दौरान वो दो दिन ही मौजूद रह सकीं। पिछले दो दिन के दौरान तीन हजार रुपये से ज्यादा का लाभ हुआ है। इसी तरह परी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी प्रमिता पटेल ने बताया कि मेले में बाईस हजार रुपये के खोवा और अन्य खाद्य सामग्रियों की बिक्री की है। इससे करीब 8 हजार रुपये का लाभ हुआ है।

मेले का आयोजकों ने सीधी बिक्री से विक्रेताओं के साथ ही उपभोक्ताओं को भी फायदा होना बताया। नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक अनिल शर्मा ने कहा कि इस मेले के जरिए ग्रामीण क्षेत्र में उत्पादित खाद्य पदार्थ व्यवस्थित रूप से शहरी क्षेत्र में उपलब्ध हो जाते हैं। इस तरह का आयोजन से क्रेता और विक्रेता को बड़ा प्लेटफॉर्म मिल जाता है। एनजीओ ई पहल के निदेशक डॉ. गोपाल कृष्ण ने बताया कि खोआ मेले के जरिए स्वयं सहायता समूहों और कृषक उत्पादक संगठनों को अपने उत्पाद सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए बड़ा अवसर मिला है। वहीं, मेले में खरीददारी करने आए लोगों ने कहा कि होली के त्योहार से पहले खोआ मेले के आयोजन को लेकर उत्साहित रहते हैं। स्वयं सहायता समूहों और कृषक उत्पादक संगठनों के उत्पाद काफी अच्छे लगे।